बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर -
धर्म-दर्शन और ईश्वरशास्त्र ( धर्मशास्त्र) अत्यन्त निकट से सम्बन्धित होते हुए भी एक-दूसरे से भिन्न हैं। यहाँ तक कि धर्म-दर्शन एक जैसे लगते हुये भी एक नहीं हैं, दोनों धर्म के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाते हैं। पाश्चात्य और पौवत्यि दर्शनों के इतिहास में अनेक ऐसे महान् दार्शनिक हुए हैं जिन्होंने ईश्वर की अवधारणा की विविधता की विवेचना की है, फिर भी उन सभी को न धर्म दार्शनिक कहा जा सकता है और न ही ईश्वरशास्त्री। पाश्चात्य दर्शन के प्लेटो, अरस्तु, एपीक्यूरस, लॉक, बर्कले, लाइबनीज, कान्ट, रॉयस, हॉकिंग, हाइटटेह आदि अनेक दार्शनिकों ने ईश्वर के बारे में अपना विचार प्रस्तुत किया है फिर भी उन्हें ईश्वरशास्त्री नहीं माना जा सकता। भारतीय दर्शन में धर्म-दर्शन की प्रथम उत्पत्ति वैदिक युग में ही दृष्टिगोचर होती है। वैदिक देवी-देवता वेदान्त काल में आकर एक निरपेक्ष ब्रह्म के रूप में स्वीकार कर लिये गये। अनेकेश्वरवाद और कर्मकाण्ड के स्थान पर एकेश्वरवाद, सर्वेश्वरवाद और आध्यात्मवाद की स्थापना हुई। बाद में चलकर बौद्ध धर्म और जैन पाश्चात्य दार्शनिकों के लिए आध्यात्मिक सत्ता ( ईश्वर या ब्रह्म) का विचार एक अति महत्त्वपूर्ण और रोचक विषय रहा है।
धर्म-दर्शन और धर्मशास्त्र में भेद करते हुए हम यह कह सकते हैं कि धर्म-दर्शन के अन्तर्गत ईश्वर की अवधारणा के अतिरिक्त अनेक धार्मिक सिद्धान्तों, धार्मिक अनुभूतियों एवं धार्मिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है जिसमें आत्मा की अमरता, अशुभ की समस्या, मोक्ष की समस्या, धर्म-निरपेक्षता, धर्म सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समन्वय की समस्या आदि का अध्ययन सम्मिलित है। धर्म के विपरीत धर्मशास्त्र किसी विशेष धर्म या उससे सम्बन्धित किसी समस्या का समाधान करता है। इस प्रकार ज्ञात होता है कि धर्म-दर्शन का क्षेत्र धर्मशास्त्र की अपेक्षा अधिक व्यापक है।
धर्मशास्त्र मुख्यतया आस्था, विश्वास एवं दैवी प्रकाशना पर आधारित होता है जबकि धर्म-दर्शन बौद्धिक एवं आलोचनात्मक है तथा अपनी विषय-वस्तु की तार्किक व्याख्या एवं समालोचनात्मक मूल्याँकन करता है। धर्म-दर्शन इस प्रकार बुद्धि एवं तर्क पर आश्रित होता है। धर्म-दर्शनं वस्तुतः दर्शन एवं धर्मशास्त्र के बीच में स्थित है। धर्मशास्त्र से अपनी अध्ययन सामग्री प्राप्त करता है तथा दार्शनिक दृष्टिकोण अपनाते हुए धर्म के प्रति आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक दृष्टिकोण अपनाता है। धर्मशास्त्र पूरी तरह धर्म पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखता है, उसके बाहर जाना उसका लक्ष्य नहीं हैं। धर्म-दर्शन, धर्मशास्त्र की तरह श्रुति एवं परम्परा पर आधारित है।
धर्मशास्त्र के विपरीत धर्म-दर्शन पर स्तर द्वितीय है क्योंकि से विषय सामग्री ग्रहण करता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि धर्मशास्त्र के अभाव में धर्म-दर्शन की कल्पना ही असम्भव है। धर्म-दर्शन प्रत्यात्मक है तो धर्मशास्त्र का लक्ष्य व्यावहारिक है। धर्म-दर्शन किसी धर्म का एक विशिष्ट धर्मशास्त्र होता है। धर्मशास्त्र का लक्ष्य धर्मशास्त्र का प्रचार, उसका प्रतिपादन करना है।
धर्मशास्त्र की तरह धर्म-दर्शन ईश्वर केन्द्रित नहीं होता है क्योंकि धर्म-दर्शन अनीश्वरवादी धर्मों का भी दार्शनिक विश्लेषण, तार्किक समीक्षा और तटस्थ मूल्याँकन करता है। धर्म-दर्शन ईश्वरवादी और अनीश्वरवादी दोनों ही प्रकार के धर्मों का समान रूप से अध्ययन करता है। धर्म- दर्शन धर्मशास्त्र के विपरीत सभी धर्मों अथवा अनेक धर्मों में समाविष्ट सामान्य सिद्धान्तों की खोज करता है।
इस प्रकार धर्मशास्त्र किसी एक विशेष धर्म से सम्बद्ध होता है जबकि धर्म-दर्शन सभी धर्मों के प्रति निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाता है। धर्मशास्त्र में हमेशा किसी धर्म विशेष का शास्त्रीय अध्ययन होता है, जैसे- बौद्ध धर्मशास्त्र, इस्लाम धर्मशास्त्र और ईसाई धर्मशास्त्र आदि। कभी-कभी एक ही धार्मिक परम्परा के अन्तर्गत कई सम्प्रदायों के पृथक धर्मशास्त्र विकसित हो जाते हैं जैसे - ईसाई धर्म के कैथोलिक धर्मशास्त्र तथा प्रोटेस्टेट धर्मशास्त्र, हिन्दू धर्म में वैष्णव धर्मशास्त्र और शैव धर्मशास्त्र विकसित हुए।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जाता है कि धर्मशास्त्र और धर्म-दर्शन दोनों में अनेक समानताएँ हैं फिर भी दोनों अत्यन्त विरोधी नहीं माने जा सकते। वस्तुतः दोनों ही धर्म एक- दूसरे से सम्बन्धित हैं परन्तु दोनों के मूल उद्देश्य अलग-अलग हैं। प्राचीनकाल में धर्म-दर्शन एवं धर्मशास्त्र में कोई अन्तर नहीं माना जाता था। धर्मशास्त्री ही धर्म- दार्शनिक भी होता था परन्तु आज दोनों को अलग-अलग माना जाता है। इसके बावजूद दोनों में कुछ ही समान विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। धर्म-दर्शन एवं धर्मशास्त्र दोनों का सम्बन्ध बौद्धिकता एवं विश्वास से है। यह बात अलग-अलग है कि धर्म-दर्शन तर्क एवं बुद्धि पर बल देता है तथा धर्मशास्त्र आस्था एवं विश्वास पर। इसी प्रकार धर्म-दर्शन दोनों ही आध्यात्मिकता से सम्बद्ध हैं। निष्कर्ष रूप से हम यह कह सकते हैं कि दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं।
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- प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
- प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
- प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
- प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
- प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
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- प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
- प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
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- प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
- प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
- प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
- प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
- प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
- प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
- प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
- प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
- प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?